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किसिको भी नहिँहै पता कल कहाँ होगा,

  • आइतवार, असार २१, २०७७
किसिको भी नहिँहै पता कल कहाँ होगा,

(आज एउटा हिँदीमा गजल लेखेको छुँ।
सुझाबको सबै सँग अनुरोध र आसा छ।)
गजल!

किसिको भी नहिँहै पता कल कहाँ होगा,
है गर जानकारी तो बता कल कहाँ होगा।

जिवन तो सफर और शंघर्षका मिश्रणहै,
आज मज्दुर कलकत्ता कल कहाँ होगा।

कामही प्यारा होता है इन्शान होता निहि,
आज है अपना हि जता कल कहाँ होगा।

मज्बुरहै लाचारहै आसियाना भी तो नही,
नैनौमे बर्षात दिल सता कल कहाँ होगा।

जातियौँ कि शंघर्षसे शिखर चुमा साशक,
गरिब का नपत्ता न अता कल कँहा होगा।
सुरेशकुमार पान्डे।०५-०७-२०२०,

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