जिएँगे या मरेँगे हमही ए बतनके लिए,
सिरकी पगही काफि है कफनके लिए।
हमही गुमराह होगएथे साहिद नसमझ,
सब कुच्छ भुल गएथे अप्ने पनके लिए।
हमारी ख्वाईश तो मानव हितमेही रही,
कुच्छ तो माएने लग्तेहैँ अमन के लिए।
अप्ना जताकर लुट्नेकी आद्त नहि थी,
वही माहिर हैँ यह सभी कथन के लिए।
बचाया है हामने जान देकर बतन अप्ना,
वे-फिकर हम आप्नि जान बदनके लिए।
सुरेशकुमार पान्डे।९-०७-२०२०,